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Feb 14, 2016

MGNREGA and Its Impact on Rural Employment

जैसा कि आपको पता है कि MGNREGA को Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act के नाम से जानते हैं. यह भारत सरकार की बहुत ही महत्वाकांक्षी परियोजना रही है.  

Picture Courtesy: The Hindu
जैसा कि हम सबको मालूम है कि महात्मा गांधी ऐसा मानते थे कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आत्मनिर्भरता, स्वशासन की वकालत किया करते थे। गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान खादी और चरखे का प्रचलन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता और स्वनिर्भरता को ध्यान में रख कर किया। आज की स्थिति वैश्वीकरण के साथ विकास की है। तीव्र गति से आर्थिक विकास के नए आयामों को गढ़ा जा रहा है। परंतु इस विकास के साथ भारी असमानता भी दिखाई पड़ती है। ग्रामीण-शहरी, अमीरी-गरीबी के बीच का अंतर व्यापक रूप से दिखता है। आज ग्रामीण क्षेत्र विकास की राह पर शहरों जैसा दौड़ पाने में लाचार बने हुए हैं। इस लाचारी को दूर करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कई अहम पहल की हैं। पीयूआरए, मनरेगा, ग्रामीण विद्युतीकरण, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वरोजगार कार्यक्रम, आधारभूत संरचना निर्माण सहित ऐसी कई योजनाएं ग्रामीण विकास व रोजगार वृद्धि हेतु चलाई जा रही हैं। पिछले कुछ वर्षों से इन योजनाओं के लाभकारी प्रभाव स्पष्ट दिखे हैं। ग्रामीण विकास, रोजगार में वृ्द्धि हुई है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीणों की स्थिति में भी सुधार आया है। प्रस्तुत पोस्ट में हम मनरेगा के विषय में चर्चा करेंगे:

मनरेगा

विश्व की सबसे बड़ी तथा महत्वाकांक्षी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना 2006 में आरंभ की गई। लागू होने के 10 वर्ष के भीतर इस योजना ने वास्तव में ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर बदल डाली है। वर्ष 2010-11 के दौरान इस योजना के तहत 5.49 करोड़ परिवारों को रोजगार मिला है। इस योजना के द्वारा अब तक करीब 1200 करोड़ रोजगार दिवस का कार्य हुआ है। ग्रामीणों के बीच 1,10,000 करोड़ रुपये की मजदूरी वितरित की जा चुकी है। आंकड़ों के मुताबिक प्रति वर्ष औसतन एक-चैथाई परिवारों ने इस योजना से लाभ लिया है। यह योजना सामाजिक समावेशन की दिशा में बेहतर सिद्ध हुई है। मनरेगा के द्वारा कुल कामों के 51 प्रतिशत कामों में अनुसूचित जाति व जनजाति तथा 47 प्रतिशत महिलाओं को शामिल किया गया। मनरेगा में प्रति अकुशल मजदूर को 180 रुपये दिये जाते हैं। इसका प्रभाव व्यापक रूप से पड़ा है। निजी कार्यों के लिए भी पारंपरिक मजदूरी जोकि अपेक्षाकृत काफी कम थी, इसके प्रभाव स्वरूप बढ़ गई है।
निश्चित रूप से मनरेगा न केवल ग्रामीण रोजगार के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है बल्कि इसने ग्रामीणों की सामाजिक- आर्थिक स्थिति को सुधारने का मौका भी प्रदान किया है।

मनरेगा की सफलता के आयाम


मनरेगा की सफलता का एक और आयाम यह है कि इसकी बदौलत गांवों में विकास कार्यों तथा स्थायी परिसंपत्तियों के निर्माण को नई गति मिल रही है। यह कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में सहायक सिद्ध हो रहा है। इसे चलाने में पंचायती राज संस्थाओं की सक्रिय भूमिका के चलते ग्रामीण प्रशासन का विकेंद्रीकरण हो रहा है और इस तरह लोकतंत्र तथा पारदर्शिता की जड़ें मजबतू हो रही है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे काम हाथ में लिए हैं जिनमें श्रम की अधिक आवश्यकता होती है.अब सिंचाई कार्यक्रम, जल आपूर्ति तथा पशुपालन जैसे नए कार्य भी मनरेगा में शामिल कर लिए गए हैं। यही नहीं, कानून में यह भी शर्त है कि काम के स्थानों पर श्रमिकों के लिए पीने के पानी, बच्चों के लिए बाल केन्द्र, आराम करने के लिए शेड आदि की व्यवस्था की जाए। महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक है कि रोज़गार पाने वालों में कम से कम एक तिहाई संख्या महिलाओं की हो। इससे ग्रामीण जनता में बचत की आदत को भी प्रोत्साहन मिल रहा है. इसमें कामगारों की मजदूरी सीधे डाकघरों, और बैंकों में जाते हैं, मनरेगा का ग्रामीण रोजगार को गति देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

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