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Mar 25, 2013

दुलारपुर के पहलवान

प्राचीन काल से ही मनुष्य की शारीरिक शक्ति किसी भी समाज, गाँव या राष्ट्र के मूल्यांकन का एक प्रमुख मानदंड रहा है. इतिहास गवाह है कि हनुमानजी, भीम जैसे बलशाली चरित्र भारतीय संस्कृति के लिए एक गौरव की बात रही है. इनके शौर्य, पराक्रम और बल का गुणगान अरिदल भी करते थे. वर्तमान काल में भी ओलम्पिक और अन्य खेलों में कुश्ती में पदक जीतकर खिलाडी अपने देश का नाम रौशन करते हैं. अगर इस संदर्भ में गाँव स्तर पर देखा जाए तो बेगुसराय जिला के तेघरा प्रखंड स्थित दुलारपुर गाँव का इतिहास भी वर्णनीय है. दुलारपुर की इस पावन धरती ने कई नामी और दिग्गज पहलवानों को जन्म दिया है.
> झोटी सिंह :- इनके बारे में कहा जाता है कि इनका शरीर विशालकाय था. इनका वजन 300 किलोग्राम से भी अधिक था.
> राम उचित सिंह :- ये भूतपूर्व विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह के चाचा थे. ये एक ऐसे पहलवान थे जिनके सीख में संतलाल सिंह जैसे पहलवान बने.
> लोकी सिंह :- ये एक बहुत ही प्रसिद्ध पहलवान थे. इनके बारे में प्रसिद्ध है कि एक बार एक हाथी गंगा नदी के किनारे एक दलदल में फंस गया. इन्होने अपने बुद्धि और बल से उस हाथी को सुरक्षित बाहर निकाल लिया. छविनाथ सिंह, चंद्रदेव सिंह, अमन, मंतोष, विक्रम आदि इनके परिवार के वर्तमान सदस्य हैं.

क्षत्रधारी चौधरी के पुत्र रघुवर चौधरी, सुखदेव सिंह, राम किसुन सिंह, मिश्री चौधरी आदि पहलवान स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही हुए थे.

दुलारपुर के इतिहास में संतलाल सिंह और पंडारक के उचरिंग सिंह सिंह के बीच की लड़ाई काफी प्रसिद्ध है. आज लोग केवल ये जानते हैं कि इस लड़ाई में उचरिंग सिंह मारे गए लेकिन इस लड़ाई का क्या कारण था ये बहुत कम लोग ही जानते होंगे.
अंग्रेजों का जमाना था. १९०० -१९०१ में सर्वे आरम्भ हुआ. A. W. Smart सर्वे अधीक्षक थे. दुलारपुर चित्रनारायण और दुलारपुर महराजी{ रसलपुर मकदूम} कृषि सह आवास क्षेत्र दुलारपुर और पंडारक के बीच की सीमा थी.परन्तु १९२० में खास महाल सर्वे के अनुसार उचरिंग सिंह के नेतृत्व में दुलारपुर के ४०० बीघा उपजाऊ जमीन पर कब्ज़ा कर लिया गया. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच शीत युद्ध आरम्भ हो गया. फसल के दिनोंमे अक्सर तनाव की स्थिति बनी रहती थी. दुलारपुर के लोगों द्वारा बोये गए फसल को पंडारक के लोग काट लेते या फिर पंडारक के लोगों द्वारा बोये फसल को दुलारपुर के लोग काट लेते थे.
यह बात सन १९२७-२८ की है. लगभग दिन के तीन बज रहे होंगे. दुलारपुर - अधारपुर के संतलाल सिंह अपनी घोड़ी पर चढ़ कर सीमन क्षेत्र के खेतों का मुआयना कर रहे थे. पास के ही किसी खेत में उचरिंग सिंह अपने अपने गांववालों के साथ बैठा था. संतलाल सिंह को देखते ही वह उनकी ओर बढ़ा. संतलाल सिंह को लगा कि शायद ये लोग उनसे कुछ बातचीत करना चाहते हों लेकिन पास आने पर उन्होंने उन लोगों के आक्रामक भाव को पढ़ लिया, अतः उन्होंने अपनी घोड़ी को एड़ लगाई और वहां से चल दिए. इतने में उचरिंग सिंह ने उन्हें गाली देते हुए कहा कि - तुम तक़दीर के धनी हो जो आज बच गए नहीं तो आज तुम्हारी खैर नहीं थी.
संतलाल सिंह काफी बलशाली और स्वाभिमानी व्यक्ति थे. उन्होंने तुरंत जबाब दिया - तुम लोग तनिक देर ठहरो हम भी आ रहे हैं, आज फैसला हो ही जायेगा. उचरिंग सिंह इस बात पर हंसा और वह वही रुक गया. उचरिंग सिंह के बारे में कहा जाता है कि वह अंग्रेज एस. डी. . टोपली साहेब का उस्ताद था . टोपली साहेब कुश्ती का प्रशिक्षण उचरिंग सिंह से ही लेता था. वह एक कुशल तलवार बाज भी था. कहा जाता है कि उसने हिंदु धर्मं की रक्षा के लिए एक बार एक गाय के बच्चे को मुसलमानों द्वारा हलाल होने से बचाया था.

[ यह घटना कुछ इस प्रकार घटी. एक गाय की बछिया को हलाल करने की घोषणा मुसलमानों ने की . साथ ही यह भी घोषणा की कि अगर कोई सच्चा हिंदु है और उसमें दम है तो कोशिश करके देख ले. यह एलान जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी. गाय की बछिया को एक चाहरदीवारी के अन्दर रखा गया था और कुछ मुस्लिम युवक वहां पहरा दे रहे थे. उचरिंग सिंह सही वक़्त पर वहां पहुच गए औए एक रस्सा से दीवार फांदकर अन्दर दाखिल हुए. अन्दर के लोगों ने उनपर हमला बोल दिया लेकिन उन्होंने सबको परास्त कर गाय की बछिया को बचा लिया. इसलिए ब्रिटिश प्रशासन भी उन्हें तरजीह देता था.]

इधर चुनौती देने के बाद संतलाल सिंह दुलारपुर दियारा में ही स्थित धनिक लाल सिंह के यहाँ गए. कहा जाता है कि संतलाल सिंह के बड़े भाई उन दिनों बाढ़ किसी काम के सिलसिले में गए हुए थे अतः संतलाल सिंह ने गाँव के वरिष्ठ धनिक लाल सिंह से उचरिंग सिंह से लड़ने की अनुमति मांगी. पहले तो धनिक लाल सिंह ने इसे टालना चाहा लेकिन वस्तुस्थिति जानने के बाद उन्होंने स्वीकृति दे दी. साथ ही उन्होंने गाँव के छोटे बड़े पहलवानों को उनके साथ कर दिया. कहा जाता है कि जब संतलाल सिंह धनिक लाल सिंह के पास जा रहे थे तो बीच में ही छठु पोद्दार की दूकान थी. राम स्वरुप पोद्दार की पत्नी अचानक घर से निकली और संतलाल सिंह को पांच सुपारी पकड़ा दी. संतलाल सिंह ने मन ही मन सोचा सगुन तो बड़ा अच्छा हुआ. लगभग पांच बजे दुलारपुर के सभी छोटे - बड़े पहलवान - लोकी सिंह, राम उचित सिंह, उदयराज, रामावतार सिंह, कमलू सिंह (मधुरापुर) आदि उसी स्थल पर पहुंचे . राम उचित सिंह ने लोकी सिंह से कहा - ' लोकी दा, हम और आप एकदम पीछे में खड़ा रहेंगे और सारे आगे रहेंगे. लड़ाई के दौरान अगर किसी से पीछे हटकर भागने की कोशिश करेगा तो उसके सबसे पहले हम और आप ही भाला मार देंगे.' इस प्रकार सभी लोग एक पंक्ति में खड़े हो गए और लोकी सिंह और राम उचित सिंह सबसे पीछे आ डटे. उचरिंग सिंह काफी साहसी योद्धा था. उनसे अपने साथ चार पांच लोंगो को लिया और शेष लोगों को कुछ दूरी पर रहने को कहा. उसने उन्हें यह भी निर्देश दिया कि ' अगर मैं जमीन पर गिर गया तो तुम लोग भाग जाना.' अब वह संतलाल सिंह के पास तलवार लेकर आ गया. उस समय संतलाल सिंह अपने बाणा (एक मोटा लट्ठ जिसमें लोहे के गोले लगे होते हैं ) को अपनी छाती से अड़ाकर खड़े थे. कहा जाता है कि उचरिंग सिंह अपने घुटनों के बल तेजी से भागते हुए आता और संतलाल सिंह पर प्रहार कर पीछे हट जाता. इस तरह उसने संतलाल सिंह पर तीन प्रहार किया. एक वार उनके माथे पर, दूसरा कमर पर और तीसरा कलाई पर. संतलाल सिंह ने तीनों वार से अपने आपको किसी तरह से बचा लिया. तीन वार कर उचरिंग लगभग 20 मीटर पीछे चला गया और पुनः वार करने की सोचने लगा. इसी बीच संतलाल सिंह के उस्ताद राम उचित खलीफा ने उन्हें गाली देते हुए कहा कि " खुद भी मरेगा और सबको मरवाएगा. जब बूत बनकर ही खड़ा रहना था तो घर में ही चूड़ी पहन कर बैठे रहते.” इतना सुन्हे ही संतलाल सिंह ने अपने बाएं और दायें खड़े उदयराज और राम अवतार को थोड़ा पीछे हट जाने को कहा. इसी बीच उचरिंग संतलाल सिंह पर वार करने उनके सामने आ पहुंचा. उचरिंग अगर चाहता तो दूसरे अन्य कई लोगों को अपना शिकार बना सकता था लेकिन उसने सिर्फ संतलाल को ही अपना लक्ष्य बनाया था. उचरिंग फुर्ती से संतलाल सिंह पर घुटनों के बल बैठते हे वार करना चाहा लेकिन संतलाल सिंह ने गजब की फुर्ती दिखाते हुए बच गए बल्कि अपने बाणा का एक जबरदस्त प्रहार उसके घुटनों पर किया और यह क्या!! बिजली की गति से दूसरा प्रहार उसके कनपट्टी पर कर दिया. उचरिंग सिंह वहीँ अचेत होकर गिर पड़ा. दुलारपुर के लोग बाबा ज्ञानमोहन की जयकार लगाते हुए जोर जोर से चिल्लाने लगे. विजित दल वापस अपने घर की ओर लौटने को अग्रसर हुआ. कुछ दूर जाने पर कमलू सिंह ने कहा - आप लोग बहुत बड़ी गलती कर रहे हो अगर उचरिंग बच गया तो हम में से किसी को भी नहीं बख्शेगा. वापस चलो उसे ख़तम ही कर देते हैं.” पुनः वापस आकर लोगों ने अचेत पड़े उचरिंग पर लाठी डंडे बरसाने शुरु कर दिया. जब उसे उठाकर दुलारपुर के लोग ले जाने लगे तबतक उसे होश आ गया था. उसने कहा - ' आपलोग मुझे छोड़ दीजिये. आज से यह सारी जम्में आपकी. आप ही इसे जोतिये.” परन्तु दुलारपुर के लोगों ने उसकी एक न सुनी. प्लान बनाया गया की इसे पानी में डूबा देते हैं. एक दो पहलवान उसे पानी में ऐसे ही ले जाने लगे. लोकी सिंह ने उसे रोका और कहा कि पहले इसके कमर में रस्सा बांधों फिर गंगा नदी में ले जाओ, नहीं तो ऐसे तो यह इतना शक्तिशाली है कि तुम दोनों-तीनों को पानी में खीचते हुए लेकर भाग जायेगा. इस प्रकार उसके कमर में रस्सा बांधकर उसे पानी में डूबा दिया गया. उसके मरने के बाद उसका अंतिम संस्कार भी इन्ही लोगों द्वारा कर दिया गया. यह खबर चरों और तेजी से फ़ैल गयी. जिस समय यह खबर बाढ़ थाना में पहुंची उस समय मिश्री लाल सिंह और हरेश्वर सिंह दोनों वहीँ मौजूद थे. मिश्री लाल सिंह तो भागने में सफल रहे लेकिन हरेश्वर सिंह गिरफ्तार हो गए. उनपर मुकदमा चला लेकिन दरभंगा महाराज की पैरवी पर मुकदमा सिर्फ 29 दिनों में समाप्त हो गया. परन्तु टोपली साहब के वापस बाढ़ आने पर यह मुकदमा फिर से शुरू हो गया और काफी मशक्कत के बाद सभी लोग इसमें बरी हुए. कहा जाता है कि उचरिंग से लड़ाई के समय संतलाल सिंह ने अपने सिर पर लोहे का बड़ा कटोरा पहन कर उसके ऊपर 6-7 धोती का पगड़ी पहन रखा थे. लड़ाई के बाद जब उन्होंने पगड़ी खोली तो देखा कि उचरिंग का उनके सिर पर किये गए तलवार के प्रहार से सभी धोती कटा हुआ था और लोहे के कटोरे पर तलवार के वार का निशान पड़ा था
Bana
 
आजादी के बाद भी पहलवानी की यह परंपरा आगे बढी. इस समय हुए पहलवानों के नाम इस प्रकार हैं :
> राम पदारथ सिंह 'बाबा'

> दुनिया लाल सिंह

> उमाकांत सिंह

> राम सकल सिंह
> श्री राम चौधरी (मेकेनिक)

> रामाकांत चौधरी

> मनटून चौधरी

> गोपाल सिंह …....
आज हम 21 वी सदी में हैं जहाँ मशीनी शक्ति द्वारा हर तरह के कार्य हो रहें हैं. धीरे धीरे पहलवानी परंपरा का लोप होता जा रहा है. ऐसे में जरुरत है कि वैसे युवक जो खेती बाड़ी और पशुधन पालन कार्य से जुड़े हैं शारीरिक बल और पहलवानी परंपरा को जीवित रखने में अपना योगदान दें. दारा सिंह, सुशील कुमार, आदि भारतीय पहलवानों ने सफलता के उच्चतम शिखर को छुआ है. जरुरत सिर्फ इस बात है कि पहलवानी के लिए मौलिक जरूरतें ब्रह्मचर्य, अनुशासन, आदि का पालन किया जाए. समाज को भी ऐसे युवकों को प्रोत्साहित करना चाहिए.

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