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Feb 6, 2012

दुलारपुर दर्शन -6

दुलारपुर का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
                      जिसको न निज गौरव, 
              न निज देश का अभिमान है।
             वह नर नहीं, नर-पशु निरा
             मृतक समान है।।
माँ भारती दासता की जंजीर में जकड़ी हुई थी। खुदीराम बोस मुज्जफरपुर जेल में फाँसी पर लटकाये जा चुके थे। प्रफुल्लचन्द चाकी ने मोकामा  में अग्रेजों की क्रूरता के भय से खुद गोली मार ली थी। देश में वन्दे मातरम और जयहिन्द के नोर की अनुगूँज सर्वत्र सुनाई देती थी। जलियाँवाला बाग की त्रासदपूर्ण घटना की चीख-पुकार सर्वत्र सुनाई दे रही थी।



बलिदान की इस बेला में दुलारपुर की माटी ने अपने बेटों से आहवान किया कि हे दुलारपुर के वीर सपूतो! तुझे माटी का मोल चुकाना पड़ेगा। तेघड़ा थाना कांग्रेस समिति का गठन किया गया। बजलपुरा के भाई जोगी लाल सिंह इसके अध्यक्ष  बनाये गये और दुलारपुर के रघुनाथ ब्रह्मचारी उसके मंत्री। संगठन का कार्यक्रम तेजी से चलने लगा। हर गाँव में सक्रिय कार्यकर्ता  बनने लगे। 

1920 के दिसम्बर महीने में भी कृष्ण  सिंह तेघड़ा आये। तेघड़ा गोरियारी पर काँगेस की महती सभा हुई । दुलारपुर के हरख सिंह, गंगा सिंह, सूर्यनारायण सिंह (डॉक्टर  साहेब), राम किसुन सिंह, राम चरित्र सिंह, जागेश्वर सिंह, र्दिरपाल सिंह आदि युवकों ने उस सभा में अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ लड़ने की कसम खाई। उसी समय गांधीजी  ने  असहयोग आन्दोलन चलाया, जिसके यहाँ के लोगों ने काफी सक्रिय भूमिका अदा की। उसी समय रघुनाथ ब्रह्मचारी जो दुलारपुर मठ के निकट फतेहपुर टोला के निवासी थे, ने अपने कॉलेज  की पढ़ाई छोड़ दी। तेघड़ा में एक बड़ी सभा हुई ।
एक राष्ट्रीय  विद्यालय स्टेशन रोड में खोला गया। बजलपुरा के स्वतंत्रता सेनानी तारणी प्र. सिंह की डायरी के अनुसार राष्ट्रीय  विद्यालय, जो स्टेशन रोड तेघड़ा में खोला गया था, के प्रधानाध्यापक स्वयं रघुनाथ ब्रह्मचारी हुए तथा सहायक तारणी बाबू तथा दो तीन अन्य शिक्षक थे। कुछ दिनों तक यह विद्यालय ठीक ढंग से चला परन्तु आन्दोलन में नरमी आने के कारण राष्ट्रीय  स्कूल भी निष्क्रिय हो गया।


1929 ई. में भारत के प्रथम राष्टंपति डा. राजेन्द्र प्रसाद का तेघड़ा आगमन हुआ। तारणी बाबू के बागीचे में उनका भाषण हुआ। नमक कानून भंग करने का मंत्र दिया  गया। विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आहवान किया गया। उसी समय 1929 में ही राजेन्द्र बाबू का आगमन दुलारपुर मठ हुआ। जहाँ उन्हें तत्कालीन महंथ भी प्रभुचरण भारती ने एक हजार रुपये चन्दा स्वरूप दिया। ऐसे भी राजेन्द्र बाबू पहले भी दुलारपुर मठ आ चुके थे। 9 अगस्त 1942 को करो या मरो के नारा के साथ गाँधीजी ने भारत छोड़ो आन्दोलन का भी गणेश किया। दुलारपुर के लोगों ने भी इसमें काफी सक्रियता दिखायी। 

अगस्त का महीना था। गंगा में भीषण बाढ़ आयी हुई थी परन्तु दुलारपुर के लोग गाँधीजी के आहवान पर अंग्रेजी प्रशासन के विरुद्ध हो गये। रेल की पटरी उखाड़ दी गई। पोस्ट ऑफिस, रजिस्ट्री ऑफिस, तेघड़ा स्टेशन, बछवाड़ा स्टेशन आदि जगहों पर तिरंगा झंडा लहराने में अग्रणी भूमिका अदा की। Quit  India  Movement  के लेखक डॉक्टर पी एन  चोपड़ा  के अनुसार -  In Bihar province, the thanas of Teghra, Simaria Ghat, Rupnagar and Bachwara were completely burnt down.


दलसिंहसराय में छात्र जीवन व्यतीत कर रहे रघुवीर सिंह गाँधी (श्री रविशंकर सिंह के पिताजी) ने पुलिस का डंडा भी खाया। गंगा  सिंह, देवनारायण सिंह, ब्रह्मदेव सिंह, अम्बिका सिंह (शिक्षक) आदि लोगों ने 1942 के आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभायी। भारत छोड़ो आन्दोलन की समाप्ति के बाद अंग्रेजों का दमन चक्र चला। इलाके के सभी प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी का शरण स्थल दुलारपुर  दियारा बना। इतना ही नहीं इतिहासकार डॉ. अखिलेश्वर कुमार के अनुसार दुलारपुर दियारा सभी गुप्त आन्दोलनों और आन्दोलनकारियों का प्रमुख स्थल बना रहा

चूँकि दुलारपुर दियारा मुख्यालय तेघड़ा से काफी दूरी पर था, इसलिए कोई भी खबर यहाँ देर से पहुँचती थी और लोग सही ढ़ंग से सक्रिय नहीं हो पाते थे। पटना कॉलेज  पटना के भूतपूर्व प्राचार्य प्रो. अर्जुन  सिंह के अनुसार क्षेत्र के तमाम स्वतंत्राता सेनानी छिपकर दुलारपुर दियारा में ही रहते थे जिनमें प्रमुख नथुनी सिंह (बीहट), अर्जुन  सिंह (मोकामा, भूतपूर्व प्राचार्य) राम बहादुर शर्मा उर्फ बैजनाथ सिंह (रुदौली), सियाराम गाँधी (पपरौर) आदि थे। दुलारपुर के लोग सभी स्वतंत्रता सेनानियों की यथासंभव मदद करते थे। 

गंगा प्रसाद सिंह गिरफ्तार हुए 


तिलकधारी सिंह के दरवाजे पर एक चबूतरा था वहीं पर दुलारपुर के स्वतंत्रता सेनानी  गंगा प्र. सिंह भी  सोये हुए थे। गाँव के ही एक मुखबिर ने अंग्रेजों द्वारा उन्हें गिरफ्तार करवा दिया। गंगा बाबू और तारणी बाबू दोनों को एक ही जेल में रखा गया और वहीं जेल से ही दोनों व्यक्ति ने अपना पारिवारिक संबंध (पुत्र-पुत्री  की शादी द्वारा ) स्थापित किया।

इस प्रकार हम पाते हैं कि देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में दुलारपुर के लोगों का काफी योगदान रहा है। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार दुलारपुर दियारा में उस समय बाढ़ आयी हुई थी। अतः नाव पर ही लोग चढ़कर भारत माता की जय, स्वतंत्र  भारत जिंदाबाद, महात्मा गाँधी  की जय का नारा लगा रहे थे। विषम भौगोलिक परिस्थिति के बावजूद दुलारपुर के निवासियों ने कदम से कदम मिलाकर आजादी की लड़ाई में अपनी अहम् भूमिका सिद्ध  की है।

1 comment:

  1. nice job nice to read dularpur darshan ..........thanks for share here

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